Monday, November 9, 2009

'भोजपुरी साहित्य और संस्कृति' विषय पर भिखारी ठाकुर को केन्द्र में रखकर एक गोष्ठी का आयोजन किया जा रहा हैं. तिथि १८ दिसम्बर २००९ को (जे. एन. यू)

आप सभी मित्रों से आग्रह है कि आगले महिना १८ दिसम्बर २००९ को जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी परिवार द्वारा एक संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा हैं। आप सभी से नम्र निवेदन है कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में भाग लेकर अपने विचारों का आदान- प्रदान करें। यह आयोजन भोजपुरी संस्कृति में दिनों दिन बढ़ रही "अप संस्कृति" के खिलाफ एक मुहीम हैं, जिसमे आपकी भागीदारी और विचार विमर्श की अत्यन्त आवश्यकता हैं। चाहें वह भोजपुरी में आए दिन गए जा रहे गानों और उसके गायकों की बात हो सभी लोग भोजपुरी कि माधुर्यता का सत्यानाश करने में लगे हैं। प्रश्न यह है कि वैश्वीकरण के दौर में जहाँ एक ओर दुनिया कि सभी भाषाएँ,बोलियाँ और उसकी संस्कृति फल फूल रही हैं और अपनी पहचान बना रही हैं। देश हीं नहीं विदेशों में भी बोली जा रही हैं अपनी भोजपुरी के साथ ९० के दशक के बाद से जो दुर्व्यवहार किया जा रहा हैं उसके लिए केवल पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति ही जिमेदार नहीं हैं बल्कि हम सभी हैं।

हम सभी को भोजपुरी के साथ न्याय करने के लिए एक साथ खड़ा होना चाहिए। यह तभी सम्भव है जब हम अपने व्यवहार में भोजपुरी को सामिल करें। हम बिहारी या पुरबिया लोगों के साथ जो भेद- भाव किया जा रहा हैं उसका सबसे कमजोर पक्ष है अपनी मातृभाषा का तिरस्कार करना। सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से संगठित लोगों के साथ बदतमीजी नहीं होती जितनी कि असंगठित लोगों के साथ होती हैं। महाराष्ट्र और पश्चिमोतर प्रान्त में कुछ अराजकतावादी तत्वों द्वारा बिहार और यू पी के लोगों ( दैनिक वेतनभोगी मजदूर, व्यापारी, नौकरी - पेशा, शिक्षा जैसे व्यवसायों से जुड़े हुए लोगों ) पर किया जा रहा अत्याचार आपस में परसपर संवाद - हीनता को दर्शाता है। विदेश में भारतियों पर आए दिन हो रहे अत्याचार भी इसका एक सशक्त उदहारण है, इसलिए जरुरी हैं कि हम सभी भोजपुरी भाषा- भाषी आपस में संवाद कायम रखने के लिए जाति, धर्म, संप्रदाय और राज्य की सीमाओं से ऊपर उठ कर इससे उत्पन्न सारे मतभेदों को भुलाकर एक साथ रहने की आदत डालनी होंगी। वैसे भी अब शहर में आ जाने के बाद से उपरोक्त विरोधाभास खत्म हो रहा हैं लेकिन आपस में एक सूत्र में पिरोने वाली भोजपुरी को पता नहीं हम कब तक तिरस्कार की नज़र से देखते रहेंगे। चाँद पर चला जाना और अपनी माँ को भूल जाना ये होशियारी नहीं है.

कुछुओ पहिरीं कुछुओ खाईं, बसी कतहुओं केंदूं जाईं
माई के बोली मत बिसराईं ! माई के बोली मत बिसराईं !!


विनय कुमार, जे एन यू
न्यू देलही- ६७
९८७१३८७३२६

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