Sunday, March 29, 2015

अनुवाद कार्य दुरूह ही नहीं चुनौतीपूर्ण भी है| इसके लिए अनुवादक को रचनाकार और एक अच्छा पाठक दोनों होना पड़ता है| 'सावधानी हटी, दुर्घटना घटी' जैसी बात अनुवादक के ऊपर सबसे सटीक लागू होता है| यदि गंभीरता से देखा जाए तो अनुवाद कर्म में लिप्त लोगों के लिए यह समर्पण का कार्य एक व्यवसाय का रूप लेता जा रहा है | यह बात अधिकांश लोगों को पता है कि अनुवाद के कार्य को ठेके पर करवाने का प्रचलन दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है| फिर भी हम इतने आशावादी है कि अनुवाद की शुद्धता के लिए मरे जा रहे हैं| भारत बहुभाषी देश है, इसका प्रमाण बहुत पहले ही मिल चुका है| आजादी के समय से आज तक इस देश की कोई एक भाषा नहीं बन पायी| सरकारी तौर पर हिंदी थोपी गयी तो व्यक्तिगत तौर पर अंग्रेजी के गुलाम होते गए| यह अंग्रेजी केवल शान-शौकत की भाषा न बन कर अब दिनों-दिन ज्ञान और विज्ञान की भाषा बनती जा रही है| वर्तमान समय भाषा को लेकर ज्यादा संक्रमण का काल है| ऐसे में आदिवासी समुदाय में अपनी संस्कृति को लेकर जो नारे लगाये जाते हैं वह ज्यादा उपयुक्त होता जा रहा है, " नाची से बाची" |    

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