Tuesday, July 18, 2017

भाषायी अस्मिता कई बार अन्य अस्मिताओं पर भरी पड़ती है। उदाहरण के लिए प्रादेशिक झगड़ों को ताख पर रखकर दूर देश में जाने पर एक हो जाना और उस भाषा की अधीनता को स्वीकारते हुए सामने वालों के साथ नरमी से पेश आना भी एक तरह की भाषायी स्वामित्व को न चाहते हुए भी उसे अंगीकार करना ही तो होता है। जब हम देखते हैं कि लोगों के आपसी तालमेल बिगड़ रहे हैं, तो हम आपसी खाई को पाटने के लिए विभिन्न संकेतों का सहारा लेते हैं। जिसे भाषायी अभिव्यंजना कह सकते हैं। 

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